सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मुख्य उद्देश्य श्री बांके बिहारी मंदिर के दर्शनार्थियों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराना है, जो वृंदावन आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ को ध्यान में रखते हुए एक जरूरी कदम माना जा रहा है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को यह अनुमति दी है कि वह मंदिर के फंड का उपयोग कॉरिडोर परियोजना के लिए कर सकती है, बशर्ते कि अधिग्रहित 5 एकड़ भूमि देवता (भगवान श्री बांके बिहारी जी) के नाम पर रजिस्टर्ड हो।
इस आदेश से यह सुनिश्चित किया गया है कि:
भूमि पर मंदिर का ही अधिकार रहेगा, न कि राज्य सरकार का।
कॉरिडोर से प्राप्त सुविधाएं श्रद्धालुओं और मंदिर की सेवा में ही उपयोग होंगी।
मंदिर की पारंपरिक धार्मिक गरिमा और स्वायत्तता बनी रहेगी।
आइए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़े कानूनी और धार्मिक दोनों पहलुओं को समझते हैं:

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कानूनी पहलू:
1. देवता को ‘ज्यूरिस्टिक पर्सन’ (Juristic Person) मानना:
भारतीय कानून में मान्यता है कि मंदिरों में प्रतिष्ठित देवता को एक कानूनी व्यक्ति (legal entity) माना जाता है।
इसका मतलब है कि देवता के नाम से जमीन खरीदी जा सकती है, मुकदमा दायर किया जा सकता है और संपत्ति का स्वामित्व हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी सिद्धांत के तहत आदेश दिया कि अधिग्रहित भूमि श्री बांके बिहारी जी के नाम पर रजिस्टर्ड हो।
2. मंदिर फंड का उपयोग:
आम तौर पर धार्मिक संस्थाओं के फंड का उपयोग उसी संस्था या देवता से संबंधित कार्यों में ही हो सकता है।
चूंकि कॉरिडोर परियोजना का उद्देश्य श्रद्धालुओं की सुविधा और मंदिर का विकास है, इसलिए कोर्ट ने इसे उचित मानते हुए मंदिर फंड के उपयोग की अनुमति दी।
3. राज्य सरकार की भूमिका:
कोर्ट ने सरकार को ज़मीन अधिग्रहण की अनुमति दी, पर यह स्पष्ट किया कि यह सार्वजनिक हित और धार्मिक उद्देश्य के लिए हो, न कि व्यावसायिक लाभ के लिए।
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धार्मिक पहलू:
1. श्रद्धालुओं की सुविधा:
श्री बांके बिहारी मंदिर में भारी भीड़ होती है और कई बार भगदड़ जैसी स्थिति बन जाती है।
कॉरिडोर बनने से भीड़ का प्रबंधन, दर्शन व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं (शौचालय, पेयजल, प्रतीक्षालय आदि) में सुधार होगा।
2. धार्मिक भावना की रक्षा:
कई स्थानीय लोग और सेवायत (पुजारी वर्ग) इस बात को लेकर चिंतित थे कि सरकार का हस्तक्षेप मंदिर की धार्मिक परंपराओं को प्रभावित कर सकता है।
कोर्ट ने जमीन को देवता के नाम पर रजिस्टर्ड करने की शर्त लगाकर यह सुनिश्चित किया कि मंदिर की स्वायत्तता बनी रहे।
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यदि आप चाहें तो मैं इस फैसले से जुड़े पूर्व विवाद, सेवायतों की आपत्ति, या कॉरिडोर की संभावित रूपरेखा पर भी जानकारी दे सकता हूँ। आपको किस दिशा में जानकारी चाहिए?