
फर्रुखाबाद- कल ख़बर आई कि डीएम आशुतोष कुमार द्विवेदी जी पटेल पार्क आने वाले हैं, पूरे पटेल पार्क में जैसे सफाई की सुनामी आ गई। जो महीनों से झाड़ -झंखाड़ और टूटे झूलों की दर्द भरी कहानी सुना रहा था, वह अचानक ‘विकास’ का पोस्टर बन गया।
सुबह-सवेरे जैसे ही अफवाह फैली कि डीएम साहब खुद तशरीफ़ ला रहे हैं, पालिका के अफसर ऐसे हरकत में आ गए जैसे किसी ने मधुमक्खी के छत्ते में पत्थर मार दिया हो। झूले जो अब तक “टूटे हुए सपनों” की तरह पड़े थे, उनकी ऐसी मरम्मत शुरू हुई जैसे उन्हें NASA में भेजा जाना हो।
मुख्य सफाई निरीक्षक, अधिशासी अधिकारी और दर्जनों सफाईकर्मी अपने झाड़ू-बाल्टियों के साथ मैदान में उतर पड़े। पूरे पार्क को एक ही दिन में ऐसा चमकाया गया कि पेड़-पौधों को भी शक होने लगा कि कहीं उन्हें भी सफेदी से पोत तो नहीं दिया जाएगा।
अब सवाल उठता है कि जब ठेकेदार को पहले ही मोटी पेमेंट कर दी गई थी, तो झूले इतने दिन तक ‘हड्डी तोड़ सेवा’ क्यों दे रहे थे? जवाब सीधा है – “विकास” भी VIP कल्चर का भक्त हो गया है। आम आदमी के लिए टूटा झूला और गंदगी, लेकिन डीएम साहब के लिए फूलों की चादर और चमचमाते झूले!
पार्क का सौंदर्यीकरण अभी अधूरा है, लेकिन जैसे ही किसी और बड़े साहब के आने की भनक लगेगी, बचा-कूचा काम भी पूरा हो जाएगा। हो सकता है अगली बार किसी मंत्री जी के आने पर पार्क में वाई-फाई, म्यूजिकल फाउंटेन और हेलीकॉप्टर लैंडिंग ज़ोन भी बना दिया जाए।
कुल मिलाकर, पटल पार्क हमें यही सिखाता है कि ‘विकास’ वहाँ नहीं होता जहाँ ज़रूरत होती है, बल्कि वहाँ होता है जहाँ कैमरा और डीएम की गाड़ी रुकती है।