
शाहजहांपुर | आपतक न्यूज़ 24 संवाददाता
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में बकरीद से पहले एक संवेदनशील मामला सामने आया है, जहां हिंदू सफाई कर्मचारियों ने ईद-उल-अजहा (बकरीद) पर होने वाली कुर्बानी के दौरान बड़े जानवरों के अवशेष उठाने से स्पष्ट इनकार कर दिया है। यदि उन्हें ऐसा करने पर मजबूर किया गया, तो सामूहिक रूप से हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी गई है।
यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब उत्तर प्रदेशीय सफाई कर्मचारी संघ, शाहजहांपुर इकाई ने 5 जून को जिलाधिकारी को एक औपचारिक पत्र सौंपा, जिसमें साफ तौर पर कहा गया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय, सांड, बैल और भैंस जैसे पवित्र माने जाने वाले पशुओं के अवशेष उठाना हिंदू धर्म के विरुद्ध है, और वे ऐसा कार्य नहीं कर सकते।
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✉️ संघ का पत्र क्या कहता है?
पत्र में कहा गया है:
> “नगर निगम शाहजहांपुर, नगर पालिका परिषद तिलहर, जलालाबाद, खुदागंज, कांट, अल्लाहगंज, खुटार, बंडा, निगोही, आदि क्षेत्रों के सभी हिंदू कर्मचारी इस ईद पर कुर्बानी के बाद बड़े जानवरों के अवशेष नहीं उठाएंगे। यदि जबरन उठवाने का प्रयास हुआ, तो हम अवकाश नहीं, बल्कि हड़ताल पर जाएंगे। इससे उत्पन्न स्थिति की समस्त जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।”
पत्र पर प्रदीप कुमार वाल्मीकि (प्रांतीय उपाध्यक्ष) सहित कई पदाधिकारियों के हस्ताक्षर हैं।
प्रशासन में हड़कंप
सफाई कर्मियों के इस सामूहिक विरोध और चेतावनी से जिला प्रशासन की चिंताएं बढ़ गई हैं। बकरीद जैसे पर्व पर शहर की साफ-सफाई बनाए रखना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है।
सूत्रों के मुताबिक, वैकल्पिक व्यवस्थाओं जैसे कि प्राइवेट एजेंसियों या धार्मिक दृष्टि से स्वीकार्य सफाई स्टाफ को तैयार रखने की योजना बनाई जा रही है, ताकि किसी प्रकार का सांप्रदायिक तनाव या अव्यवस्था उत्पन्न न हो।
सामाजिक दृष्टिकोण
यह मामला सिर्फ सफाई व्यवस्था का नहीं बल्कि धार्मिक मान्यताओं और कार्य क्षेत्र की मर्यादा से जुड़ा हुआ है। एक तरफ कर्मचारियों का धर्म-आधारित विरोध है, तो दूसरी ओर नागरिक सुविधाओं और त्योहार की व्यवस्थाएं बनाए रखने की प्रशासनिक जिम्मेदारी।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मुद्दों का हल केवल संवाद, समन्वय और संवेदनशीलता से ही संभव है। बिना ठोस समाधान के यह स्थिति राज्य के अन्य जिलों में भी आंदोलन का रूप ले सकती है।
निष्कर्ष
शाहजहांपुर की यह चेतावनी प्रशासन के लिए एक अलार्म बेल की तरह है। धार्मिक भावनाओं और प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखना अब सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
यदि समय रहते इस पर संवाद और समाधान नहीं निकाला गया, तो यह मामला बड़ी सामाजिक बहस और प्रशासनिक संकट का कारण बन सकता है।